सास ससुर की प्रोपर्टी में दामाद का कितना हिस्सा, हाईकोर्ट का आया अहम आदेश Property Rights

By Meera Sharma

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Property Rights: भारतीय समाज में दामाद को विशेष सम्मान दिया जाता है और उन्हें अक्सर बेटे के समान प्रेम और आदर मिलता है। परंपरागत रूप से दामाद को घर का अतिथि माना जाता है और उनकी उचित देखभाल की जाती है। हालांकि सामाजिक सम्मान और कानूनी अधिकार दो अलग विषय हैं। जबकि बेटी के पिता की संपत्ति में समान अधिकार होते हैं, यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि क्या दामाद को भी सास-ससुर की संपत्ति में कोई हिस्सा मिलता है। यह विषय विशेष रूप से तब और जटिल हो जाता है जब पारिवारिक रिश्तों में तनाव आ जाता है या परिस्थितियां बदल जाती हैं।

हाल ही में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सामने एक ऐसा ही मामला आया था जिसमें दामाद के संपत्ति अधिकारों और दायित्वों का प्रश्न उठा था। इस मामले में न्यायालय को यह निर्णय करना था कि दामाद को सास-ससुर की संपत्ति में रहने का अधिकार है या नहीं, विशेषकर तब जब वह अपने दायित्वों का पालन नहीं कर रहा हो। यह निर्णय न केवल इस विशेष मामले के लिए बल्कि भविष्य के समान मामलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है।

मामले की पूरी पृष्ठभूमि और विवाद

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इस मामले की शुरुआत भोपाल निवासी दिलीप मरमठ और उनके ससुर नारायण वर्मा के बीच विवाद से हुई थी। दिलीप मरमठ ने न्यायालय में दावा किया था कि उसने अपने ससुर के घर के निर्माण के लिए दस लाख रुपये का योगदान दिया था और इसके प्रमाण के रूप में बैंक स्टेटमेंट भी प्रस्तुत किए थे। प्रारंभिक व्यवस्था के अनुसार ससुर नारायण वर्मा ने अपनी बेटी ज्योति और दामाद दिलीप को घर में रहने की अनुमति दी थी। इस व्यवस्था के तहत दामाद को अपने बुजुर्ग ससुर की देखभाल करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी।

हालांकि 2018 में एक दुखद घटना घटी जब दुर्घटना में ज्योति की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु के बाद दिलीप मरमठ ने दूसरी शादी कर ली। दूसरी शादी के बाद स्थिति में नाटकीय बदलाव आया और दामाद ने अपने बुजुर्ग ससुर की देखभाल करना बंद कर दिया। उसने ससुर को खाना देना और दैनिक खर्च प्रदान करना बंद कर दिया। यह स्थिति 78 वर्षीय नारायण वर्मा के लिए अत्यंत कष्टकारी थी क्योंकि वे एक सेवानिवृत्त कर्मचारी थे और उन्हें अपनी बीमार पत्नी की भी देखभाल करनी पड़ती थी।

एसडीएम कोर्ट में कानूनी कार्रवाई

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परिस्थितियों से तंग आकर नारायण वर्मा ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत एसडीएम कोर्ट में अपील दायर की। यह अधिनियम विशेष रूप से बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है और इसके तहत वरिष्ठ नागरिकों को उनकी संतान या रिश्तेदारों से उचित देखभाल पाने का अधिकार है। एसडीएम ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि दामाद अपने दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है। न्यायालय ने दिलीप मरमठ को ससुर का मकान खाली करने का आदेश दिया।

इस आदेश के विरुद्ध दिलीप मरमठ ने कलेक्टर भोपाल के सामने अपील दायर की। उसका तर्क था कि उसने घर के निर्माण में वित्तीय योगदान दिया था और इसलिए उसका भी उस संपत्ति में अधिकार है। हालांकि कलेक्टर ने भी एसडीएम के फैसले को बरकरार रखा और दामाद की अपील को खारिज कर दिया। कलेक्टर ने यह माना कि वित्तीय योगदान के बावजूद भी दामाद का मुख्य दायित्व ससुर की देखभाल करना था जिसे उसने पूरा नहीं किया था।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का निर्णयक फैसला

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निचली अदालतों के फैसलों से असंतुष्ट होकर दिलीप मरमठ ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की युगल पीठ ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई की और सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया। न्यायालय ने पाया कि यद्यपि दामाद ने घर के निर्माण में वित्तीय योगदान दिया था, लेकिन यह योगदान संपत्ति के स्वामित्व के लिए नहीं बल्कि पारिवारिक दायित्व के रूप में था। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि प्रॉपर्टी ट्रांसफर अधिनियम के तहत कोई औपचारिक संपत्ति हस्तांतरण नहीं हुआ था।

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा कि माता-पिता के भरण-पोषण अधिनियम के तहत जब कोई व्यक्ति अपने दायित्वों का पालन नहीं करता तो उसे संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है। न्यायालय ने यह भी माना कि नारायण वर्मा एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं जो भविष्य निधि से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं और उन्हें अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए घर की आवश्यकता है। इन सभी तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने दामाद की अपील को खारिज कर दिया और उसे एक महीने के भीतर मकान खाली करने का आदेश दिया।

कानूनी सिद्धांत और व्यावहारिक निहितार्थ

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इस निर्णय से कई महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत स्थापित होते हैं। पहला, केवल वित्तीय योगदान देने से संपत्ति में स्वामित्व का अधिकार नहीं मिल जाता जब तक कि औपचारिक हस्तांतरण न हो। दूसरा, पारिवारिक रिश्तों में अधिकार और दायित्व दोनों साथ-साथ चलते हैं। जब व्यक्ति अपने दायित्वों का पालन नहीं करता तो उसके अधिकार भी समाप्त हो सकते हैं। तीसरा, वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम एक शक्तिशाली कानून है जो बुजुर्गों के अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा करता है।

यह निर्णय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल अधिकारों के बारे में नहीं बल्कि जिम्मेदारियों के बारे में भी हैं। जो लोग अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों की उपेक्षा करते हैं, उन्हें इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यह निर्णय दामादों के लिए यह स्पष्ट करता है कि सामाजिक सम्मान और कानूनी अधिकार अलग चीजें हैं। सास-ससुर की संपत्ति में दामाद का कोई स्वाभाविक कानूनी अधिकार नहीं होता है।

भविष्य के लिए दिशा-निर्देश और सुझाव

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इस निर्णय से पारिवारिक संपत्ति और रिश्तों के बारे में कई महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। परिवारों को चाहिए कि वे संपत्ति के मामलों में स्पष्टता बनाए रखें और सभी व्यवस्थाओं को लिखित रूप में रखें। यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक संपत्ति में वित्तीय योगदान देता है तो इसकी शर्तें और अपेक्षाएं स्पष्ट होनी चाहिए। दामादों को समझना चाहिए कि सास-ससुर का सम्मान और देखभाल करना न केवल नैतिक दायित्व है बल्कि कानूनी आवश्यकता भी हो सकती है।

बुजुर्गों को भी अपने अधिकारों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता लेने से नहीं झिझकना चाहिए। वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम एक प्रभावी उपकरण है जो उनकी सुरक्षा कर सकता है। समाज को भी यह समझना चाहिए कि बुजुर्गों की देखभाल केवल परिवार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि सामूहिक दायित्व है। इस प्रकार के न्यायिक निर्णय समाज में संवेदनशीलता बढ़ाने और पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करने में सहायक होते हैं।

Disclaimer

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यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और विशिष्ट कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है। संपत्ति अधिकार और पारिवारिक कानून से संबंधित मामलों में योग्य वकील से परामर्श लेना आवश्यक है। न्यायिक निर्णय और कानूनी प्रावधान समय के साथ बदल सकते हैं।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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